February 2018

बदलता बचपन

मैं बचपन ‘नादान’, अस्तित्व की लड़ाई में जूझता हुआ, क्या हूँ मैं, किसका हूँ मैं, सवालों का जवाब ढूंढता हुआ, याद करता हूँ कभी,बातें जो बीत चुकी हैं कल, मौज-मस्ती के वे सारे दिन,खुशियों वाला हर एक पल. नदी किनारे थे मछलियाँ पकड़ते, और बहाते कागज की नाव, पेड़ों से कभी इमली तोड़कर, खाते थे

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